Saturday, October 15, 2022

कैसी बदनामी

  "यशोदा बाई आज काम पर देर से कैसे आई ?"रमा ने पूछा ।

      वह बहुत दुखी लग रही थी । वहीं दरवाजे पर बैठ गई और भरे गले से बताने लगी ,"आपसे क्या छुपा है मेम साब ? आपतो सब जानते ही हो,कैसे मैने घर-घर झाडू-पोचा और बरतन करके अपने बच्चों को पाल पोस कर बड़ा किया ? पढ़ाया लिखाया । कितनी परेशानियों का सामना किया । कैसे बच्चों की शादियाँ भी करीं ?"

        बैचेन होकर रमा ने फिर पूछा,"अब हुआ क्या,ये तो बता ?"

       "मेरी बड़ी लड़की के साथ धोखा हो गया ,मेम साब ।"

        रमा ने उसे ढ़ाँढ़स बँधाते हुए कहा,"अब रोना बंद कर और विस्तार से बता क्या हुआ "?

       "हमें तो कहा था ,लड़का पढ़ा-लिखा है और नौकरी भी करता है । परन्तु अब जाकर पता चला कि वो पढ़ा-लिखा भी नहीं है और कोई नौकरी भी नहीं करता है । यूँ ही शहर में आवारा गर्दी करता फिरता है ।"

       उत्सुकतावश रमा ने पूछा,"तूने क्या सोचा,क्या करेगी?"

       वह बोली ,"मैने अपने समाज में बात की थी । उनसे मदद की भी गुहार लगाई थी । पर मेम साब कोई कुछ नहीं बोला ।कहते हैं कि अब तो शादी कर दी ,कुछ नहीं हो सकता । लड़का पढ़ा नहीं तो क्या हुआ ? उसे तो ससुराल में ही जीवन बिताना होगा ।"

     "मेम साब मेरा तो खून खौल गया । ऐसे घर में अपनी बेटी को कैसे छोड़ दूँ  । वो तो मेरी बेटी को मारता भी है । कभी जान से ही मार दिया तो ?"

     " मैं उनमें से नहीं हूँ जो बदनामी के डर से बेटी को तलाक नहीं दिलाऊँ । उस समाज से तो मुझे मेरी बेटी ज्यादा प्यारी है । पढ़ी-लिखी है खुद कमा कर खा लेगी ।" 


परिचय - रेणु चन्द्रा माथुर

                


नाम:      रेणु चन्द्रा माथुर

शिक्षा:   एम.एस.सी .(जूलोजी).बी.एड.

सम्प्रति:   स्वतन्त्र लेखन

विधाऐं:  कविता,लघुकथा,कहानी एवं हाइकु लेखन ।


प्रकाशन:  1  धूप के रंग,( कविता संग्रह  )

            ( राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा स्वीकृत )

             2  छोटी सी आशा (लघुकथा संग्रह )

             3 चाहत का आकाश ( कविता संग्रह )

             4 शीशे की दीवार   (कहानी संग्रह )

             5  विश्वास की धूप (कहानी संग्रह )प्रकाशनार्थ 

            पत्र पत्रिकाओं में  रचनाएँ प्रकाशित 

              सम्पर्क सूत्र :  140,New Colony,M.I.Road.

                    Paanch Batti,Near Wall street Hotel.

                     Jaipur,Rajasthan.302001

  दूरभाष:    9460124018

 ई-मेल:    renusatish2003@yahoo.com


घर पहुँचा दो


   मैं मज़दूर हूँ
   सब सह लूँगा
   पहले भी था 
   मैं सड़क पर
   अब भी रह लूँगा,
   मैं किसान हूँ
   मेहनत का सदा
   हूँ पाला हुआ
   मुझे महलों का
   मोह नहीं-
   कल भी तो था
   झोंपड़े में
   आज भी रह लूँगा,
   रोजी-रोटी को मैं
   जो घर से निकला 
   दर-बदर की 
   खाईं ठोकरें 
   तब दो निवाले 
   कमाकर पेट भरा,
   कोरोना के कहर से
   जो लोक-डाउन हुआ
   मैं दाने-दाने को
   फिर मोहताज हुआ
   मैं कल भी लड़ा भूख से
   आज भी लड़ लूँगा,
   शहर वीरान हुए
   रास्ते सब बंद
   पाँवों में पड़ी बेड़ियाँ 
   मुझे घर पहुँचा दो,
   दूर मेरा गाँव
   बुलाता है मुझे,
   दुआ में उठा हाथ
   आँखों में भरे आँसू 
   राह निहारती है माँ
   माँ से मिलवा दो,
   कल भी थोड़े में था खुश 
   आज भी रूखी-सूखी खा लूँगा
   बुलाता है मेरा गाँव 
   मुझे गाँव पहुँचा दो ।
   ....................

Friday, October 14, 2022

बाबूजी का श्राद्ध

बाबूजी का श्राद्ध              

             श्राद्ध पक्ष चल रहे थे। घर में बाबूजी का ग्यारस का श्राद्ध निकालना था। दो चार दिन पहिले ही पंडित जी को न्योता दे दिया था। उस दिन सुबह जब याद दिलाने के लिये उन्हें फोन किया तो, वे कहने लगे, “क्या करूँ मुझे तो बिल्कुल समय नहीं है, दूसरी जगह से भी न्योता है, पहिले वहाँ जाऊँगा। फिर वहीं से आफिस चला जाऊँगा। आपके यहाँ तो शाम को ही आ पाऊँगा।”    

 क्या करते ? आजकल पंडित जी मिलते कहाँ हैं ? सो मानना पड़ा।

       फिर थोड़ी देर में उन्हीं का फोन आया बोले- “एक बात और कहनी थी आपसे, एक जजमान के यहाँ खाना खाकर आऊँगा, सो अधिक खा नहीं  पाऊँगा। अत: टिफ़िन दे दीजिएगा... और हाँ... दक्षिणा की ठीक ठाक व्यवस्था रखिएगा।”

        हम सभी का सिर चकरा गया। सभी सोच में पड़ गये कि क्या करें ? श्राद्ध का खाना तो हम सुबह ही खिलाना चाह रहे थे। क्योंकि, माँ का कहना था- “जब तक श्राद्ध निकाल कर पंडित जी को भोजन न करा दें, घर का कोई सदस्य भोजन नहीं करता है, ऐसी परम्परा है।”

        थोड़ी देर में देखा कि घर के द्वार पर एक दीन-हीन बूढ़ा आदमी निढ़ाल अवस्था में बैठा था और बुदबुदा रहा था- “बहुत भूखा हूँ माई! कई दिनों से ठीक से खाना नसीब नहीं हुआ- कुछ खाने को दे दो।”

      मैंने पलभर सोचा... और उस बूढ़े आदमी को आदर सहित अहाते में बुला लिया... बैठाकर आग्रह पूर्वक खाना खिलाया।... बूढ़े आदमी ने भरपेट खाना खाकर तृप्ति का अनुभव किया... इसका अहसास उसके रोम-रोम से हो रहा था। ...वह ढेर सारे आशीष देकर धीरे-धीरे चला गया... उस दिन मन को जो संतुष्टि मिली उससे लगा कि बाबू जी का सही माने में श्राद्ध तो आज हुआ है। 

 -रेणु चन्द्रा माथुर

आँगन छायी

आँगन छायी 
अमावस की रात
मन उदास 

 -रेणु चन्द्रा माथुर

आँधी जो चली

आँधी जो चली 
 बिखर गये ख़्वाब 
 उड़ते पत्ते